लाभदायक है पढ़ने की आदत
प्रायः अधिकांश महिलाएं पढ़ने के मामले में यही शिकायत करती हैं कि क्या करें, पढ़ने के लिए समय ही नहीं मिलता! कुछ महिलाओं का कहना है कि रोज अखबार पढ़कर ही हमें आखिर हासिल क्या होना है? हमें कौन से कम्पटीशन में बैठना है या किसी परीक्षा की तैयारी करनी है! सुबह से शाम तक घर-बाहर के काम-काज में खटना है। जबकि घरेलू महिलाओं के लिए अखबार पढ़ना भी काफी उपयोगी सिद्ध होता है।
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प्रायः अधिकांश महिलाएं पढ़ने के मामले में यही शिकायत करती हैं कि क्या करें, पढ़ने के लिए समय ही नहीं मिलता! कुछ महिलाओं का कहना है कि रोज अखबार पढ़कर ही हमें आखिर हासिल क्या होना है? हमें कौन से कम्पटीशन में बैठना है या किसी परीक्षा की तैयारी करनी है! सुबह से शाम तक घर-बाहर के काम-काज में खटना है। जबकि घरेलू महिलाओं के लिए अखबार पढ़ना भी काफी उपयोगी सिद्ध होता है। घरेलू महिलाओं को कामकाजी महिलाओं की अपेक्षा कहीं अधिक समय घर में ही गुजारना पड़ता है। बाकी दुनिया से उनका सम्बन्ध अखबार, पत्रिकाओं, टीवी, रेडियो आदि से ही जुड़ा रह सकता है। अपने आसपास की घटनाओं के साथ-साथ देश-विदेश की घटनाओं से अवगत होना हमें जागरूक और एक जिम्मेदार नागरिक बनाता है।
संयुक्त परिवारों के अभाव में घरेलू महिला आज पहले की अपेक्षा कम सुरक्षित हैं। ठग, उठाईगीर, चोर और अन्य असामाजिक तत्व या अपराधी आज पहले की अपेक्षा अधिक सक्रिय हैं। वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए तरह-तरह की नयी-नयी तरकीबें आजमाते रहते हैं। लगभग रोज ही अखबारों में इस प्रकार की घटनाओं के समाचार संक्षेप में या विस्तार से उन असामाजिक तत्वों द्वारा अपनाए गये तरीकों की जानकारी के साथ छपते रहते हैं।
ऐसे समाचार घरेलू महिलाओं को जागरूक बनाने के साथ-साथ सावधान भी करते हैं। जरूरी नहीं कि कोई सारे काम छोड़कर सुबह-सुबह अखबार लेकर बैठ जाए। यदि ऐसा किया जाए तो पूरे परिवार की दिनचर्या ही बदल जाएगी और अनेक प्रकार की परेशानियां सामने आ खड़ी होंगी। सब अस्तव्यस्त हो जाएगा। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाते हुए प्रतिदिन कुछ समय अखबार, पत्रिकाएं, अच्छी उपयोगी पुस्तकें पढ़ने निकालना एक अच्छी आदत बन सकती है। इसे अपनी दिनचर्या में मामूली फेरबदल करके असानी से हासिल किया जा सकता है।
यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि बहुत पढ़ लिए और अब पढ़ने में समय क्यों बरबाद करे। ज्यादा पढ़कर करना भी क्या है! अनेक महिलाएं अखबार-पत्रिकाओं में विशेष रूप से भविष्य फल, फैशन, फिल्म-टीवी, सौंदर्य, व्यंजन विधियां, कविता-कहानी आदि विविध सामग्री पढ़ने तक ही सीमित रहती हैं। एक अन्य आकर्षण होता है-सेल या डिस्काउंट के विज्ञापनों का। हालांकि यह भी ग्राहकों को मूर्ख बनाने के चालाकी भरे तरीके हैं। सामान्य ज्ञान, अपने आसपास की छोटी-बड़ी घटनाओं की जानकारी, देश-विदेश की खबरें, फीचर, लेख आदि के साथ-साथ अन्य सामयिक सामग्री की प्रायः अनदेखी की जाती है।
सामान्य ज्ञान के अभाव में प्रायः चार लोगों के बीच नजरें चुरानी पड़ती हैं या गलत जानकारी प्रस्तुत करने पर मजाक का पात्र भी बनना पड़ता है। अनेक क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के बराबर हैं और कुछ क्षेत्रों में उनसे भी आगे हैं। सामान्य ज्ञान, अपने आस-पास के परिवेश और घटनाक्रम से शिक्षित होने पर भी पिछड़ी हुई हैं। सामाजिक विषयों पर चर्चा करना उन्हें प्रायः जमता नहीं है। राजनीति, खेल, व्यवसाय, अर्थ, तकनीक, दूरसंचार, स्वास्थ्य, विभिन्न गतिविधियों आदि के बारे में जानने के प्रति रुचि के अभाव के कारण उनका दायरा सौदर्य, पाक कला, फिल्म-टीवी, फैशन, गृहसज्जा, भविष्य फल आदि तक ही सीमित होकर रह जाता है। सामाजिक-आथिक मुद्दों के बारे में उन्हें तनिक भी जानकारी नहीं हो पाती।
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पढ़ते-पढ़ते लिखने को प्रेरित होकर अनेक महिला-पुरुष लेखक बन गये और वे घर बैठे पर्याप्त धन और नाम भी कमा रहे हैं। बिना पूंजी लगाए, बिना कार्यालय या वर्कशॉप खोले वे अपना काम अपनी सुविधा के अनुसार कर रहे हैं। इस प्रकार के कार्य से जहां सृजनशीलता के साथ आत्मसन्तुष्टि सम्मान तो मिलता ही है, यह धन की प्राप्ति का जरिया भी बन जाता है। यही नहीं कैरियर की दृष्टि से भी पढ़ने-लिखने की आदत बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।
• टी.सी. चन्दर/प्रभासाक्षी