गाय हमें निःस्वार्थ भाव से अनेक वस्तुएं प्रदान कर उपकृत करती है। अन्न उगाने के लिए गोबर के रूप में हमें श्रेष्ठतम और निरापद खाद देती है जिसका मुकाबला कोई भी रासायनिक खाद नहीं कर सकती। अमृत जैसा सुपाच्य, बहुउपयोगी और पौष्टिक दूध देती है। अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में गाय हमें निरन्तर उपकृत करती रहती है। इस पूजनीय पशु के प्रति आज मानव का व्यवहार सचमुच निकृष्ट और निन्दनीय है।
भले ही हम गाय को माता के रूप में मानते हैं जिसकी तुलना ईश्वर से की जाती है। मां जन्म देती है, पालन-पोषण करती है और स्वयं कष्ट उठाकर सन्तान को सदा सुख पहुंचाना चाहती है। सभी ने मां को महान बताया है। गाय को हमारे यहां दूसरी पालक माता माना गया है जिसका हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस मार्मिक सच्चाई को समझने की आज बहुत अधिक आवश्यकता है। मनुष्य को प्रकृति ने यथासम्भव अधिकतम दिया है पर मनुष्य उसके उपकार को न मानते हुए प्रकृति पर ही अनेकानेक अत्याचार करता रहता है। अधिकांश लोगों का गाय और गौवंश के प्रति, विशेष रूप से उसके पालकों का व्यवहार ही उचित नहीं है।
गाय हमें निःस्वार्थ भाव से अनेक वस्तुएं प्रदान कर उपकृत करती है। अन्न उगाने के लिए गोबर के रूप में हमें श्रेष्ठतम और निरापद खाद देती है जिसका मुकाबला कोई भी रासायनिक खाद नहीं कर सकती। अमृत जैसा सुपाच्य, बहुउपयोगी और पौष्टिक दूध देती है। अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में गाय हमें निरन्तर उपकृत करती रहती है। इस पूजनीय पशु के प्रति आज मानव का व्यवहार सचमुच निकृष्ट और निन्दनीय है।
अपने स्वार्थ के लिए गाय को आदमी पालता है। जब उसकी स्वाथ पूर्ति में किसी प्रकार की रुकावट या कमी आती है तो वह गाय या गोवंश की उपेक्षा करने लगता है। वह गोवंश को आवारा घूमने और अपना भोजन स्वयं तलाशने के लिए यूं ही छोड़ देता है। प्रायः गर्भवती गायें सड़क किनारे या खाली पड़ी जमीन पर बछड़े को जन्म देती दिखाई देती हैं। कोई धर्मभीरु महिला या पुरुष उसकी यथासम्भव सेवा-सुश्रूषा भले कर दे पर उसका पालक इस बारे में अनभिज्ञ ही बना रहता है। यहां तक कि गो वंश के शरीर पर गर्म लोहे आदि से अपने स्वामित्व की पहचान के लिए कोई चिन्ह या शब्द दाग देते हैं।
हमारे यहां गोवंश प्रायः कूड़दानों के पास अड्डा जमाये रहता है। इस निरीह और शाकाहारी गोवंश के सदस्यों को कूड़े के ढेर में से सड़ा-गला खाद्य-अखाद्य जो भी मिले उसके उदर में जाता है। पानी की कमी और उपेक्षा के चलते इन निरीह पशुओं को भला पानी कौन पिलाए! ऐसे में ये पशु प्रायः अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं। इनके पेट में खाद्य-अखाद्य पदार्थों के अलावा लकड़ी, कांच, लोहे, प्लास्टिक आदि के टुकड़े, कागज, पाॅलिथिन, कीलें, कंकड़-पत्थर, मिट्टी आदि पहुंच जाते हैं जो इनकी मौत या विकलांगता और रोगी होने का कारण बनते हैं। यही नहीं ये पशु छोटी-बड़ी दुर्घटनाओं के श्किार हो जाते है और स्वयं भी दुर्घटनाओं के कारण बन जाते हैं जिससे अन्य लोगों को शरीरिक व आर्थिक हानि उठानी पडती है।
आवारा घूमने वाले पशुओं को कभी-कभी पकड़कर कांजी हाउस या गौशालाओं में रखा जाता है। वहां भी इनके साथ दुर्व्यवहार और ठीक प्रकार से देखभाल न करने की खबरें प्रायः अखबारों में आती रहती हैं। उपयोगी न रहने पर गोवंश के सदस्यों को कसाइयों को बेच दिया जाता है। इन मूक पशुओं को चुराकर कसाइयों को बेचने वाले भी हमारे यहां सक्रिय रहते हैं। कभीकभार ये लोग पकड़े भी जाते हैं। देश में सरकारी सहमति से नये-नये कसाईघर भी खुल रहे हैं। बैलों के उपयोग की जगह ट्रैक्टरों के बढ़ते उपयोग ने भी हमारे पशुधन को उपेक्षा का शिकार बना दिया है। देश में तेजी से घटता पशुधन सचमुच चिन्ता का विषय है।
यह निःसन्देह खतरे की घन्टी है। नियम-कानून बनाने से कुछ नहीं होने वाला। गोवंश पालकों के अलावा हम सभी को अपनी थोड़ी सी जिम्मेदारी और सज्जनता का परिचय देना चाहिए। अच्छा यही है कि समय रहते हम चेत जाएं और गोवंश की उपेक्षा के स्थान पर उसके उपयोग और उपकारों का ध्यान रखते हुए उस पर अत्याचार बन्द कर दें तथा उसका अपेक्षित ध्यान रखें।
मंजू गोपालन